बिहार के पहले ही आम चुनाव का जनता ने किया था बहिष्कार

बिहार के पहले ही आम चुनाव का जनता ने किया था बहिष्कार


पटना / 22 मार्च, 1912 को अस्तित्व में आए बिहार की विधायिका का इतिहास भी रोचक है। पहले विधान परिषद गठित हुआ। तब महज 43 सदस्य थे। परिषद की एक्जिक्यूटिव काउंसिल के 3 पदेन, 21 निर्वाचित और गवर्नर जनरल की सहमति से 19 मनोनीत सदस्य की व्यवस्था की गई।


निर्वाचित 21 सदस्यों में नगर निगम से 5, जिला परिषद से 5, जमींदार वर्ग से 5, मुस्लिम समुदाय से 4, खनन समुदाय से 1 और निलहों से 1 सदस्य चुने जाने थे। 20 जनवरी, 1913 को विधान परिषद की प्रथम बैठक पटना कॉलेज के सेमिनार हॉल में हुई क्योंकि तब विधानमंडल का भवन नहीं बना था। परिषद की प्रथम बैठक में ही बच्चों की शैक्षिक सुविधाओं का प्रश्न सामने लाया गया। 


पहले चुनाव से जनता विमुख : भारत सरकार अधिनियम, 1919 के तहत 29 दिसंबर 1920 को बिहार-उड़ीसा गवर्नर राज्य घोषित हुए। लार्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा गवर्नर बनने वाले पहले भारतीय थे। दो सदनों की व्यवस्था की गई। परिषद की सदस्य संख्या 103 कर दी गई जिनमें 76 निर्वाचित, 15 नामित, 12 नामित गैर सरकारी सदस्य होते थे। प्रत्यक्ष मतदान पद्धति लागू की गई।


राज्य के 66 सामान्य निर्वाचन क्षेत्र में गैर मुस्लिम ग्रामीण के लिए 42, मुस्लिम ग्रामीण के लिए 15, गैर मुस्लिम शहरी के लिए 6 व मुस्लिम शहरी के लिए 3 सीटें तय की गईं। 10 विशेष निर्वाचन क्षेत्र में जमींदार के लिए 5, खनन वर्ग के लिए 2, यूरोपियन समुदाय, निलहों व विवि प्रतिनिधि के लिए 1-1 सीट थी। चुनाव में सीमित मताधिकार था। बड़ी संख्या में लोगों ने वोट ही नहीं दिए।


हिन्दू-मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र थे, सिर्फ खास को था वोट का अधिकार


तब वोट डालने का अधिकार अमीरों, संप्रदाय एवं वर्ग विशेष के प्रतिनिधियों तथा कुछ विशिष्ट व्यक्तियों तक ही सीमित था। हिन्दू और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन की व्यवस्था थी। निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल तीन वर्षों का था। निर्वाचन मंडल के लिए ब्रिटिश भारत का नागरिक, 21 वर्ष उम्र के अतिरिक्‍त शहरी क्षेत्र के आयकरदाता के लिए तीन रुपए नगरपालिका कर, ग्रामीण क्षेत्र के लिए 12 रुपए उपकर, 180 रुपए से अधिक मूल्य की संपत्ति का मालिक अथवा सम्राट की सेना का सेवामुक्त अधिकारी या सैनिक होने की बाध्यता रखी गई।


पहले चुनाव में 28 निर्विरोध चुने गए


29 नवंबर और 16 दिसंबर, 1920 के बीच बिहार विधान परिषद के लिए प्रथम चुनाव संपन्न हुआ। उस समय तक कांग्रेस द्वारा विधान परिषद एवं उसके लिए होनेवाले चुनाव के बहिष्कार करने का निर्णय लिया जा चुका था। इस चुनाव में किसी दल ने हिस्सा नहीं लिया। इस कारण चुनाव राजनैतिक कम, व्यक्तिगत अधिक हो गया। 76 स्थानों में से 74 स्थानों पर चुनाव हुआ जिसमें सिर्फ 46 निर्वाचन क्षेत्रों में ही चुनाव हुआ, शेष 28 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए एक ही उम्मीदवार थे, सभी निर्विरोध चुने गए।


भागलपुर, पटना व तिरहुत में सिर्फ 11% वोट पड़े


गांधी के असहयोग आंदोलन के कारण आम जनता चुनाव से विमुख ही रही। अधिकांश राष्ट्रवादी नेताओं ने चुनाव में भाग नहीं लिया। भागलपुर, पटना और तिरहुत जिलों के कुछ क्षेत्रों में 11 प्रतिशत से भी कम मतदान हुआ। इस चुनाव के बाद बिहार का सबल नेतृत्व वर्ग विकसित हो गया था।


बाबू गणेश दत्त सिंह पटना पूर्वी गैर मुस्लिम ग्रामीण, द्वारिका प्रसाद सिंह आरा गैर मुस्लिम ग्रामीण, बाबू राजीव रंजन सिन्हा शाहाबाद दक्षिण गैर मुस्लिम ग्रामीण क्षेत्र से चुनकर आए थे। सदन में उनके साथ बैठनेवालों में राजा बहादुर कृत्यानन्द सिंह, स्वामी विद्यानंद, महाराज कुमार चन्द्र मौलेश्वर प्रसाद सिंह, चौधरी भगवत प्रसाद सामंतराय महापात्र, राय बहादुर राधा गोविंद चौधरी, पी. केनेडी, जेएच पैटिन्सन, उमेश चन्द्र बनर्जी और पीके सेन आदि थे।